जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य जी महाराज का उद्बोधन
नई दिल्ली. विरक्त शिरोमणि पूज्य स्वामी वामदेव जी महाराज द्वारा स्थापित अखिल भारतीय सन्त समिति के तत्वाधान में आयोजित आज का यह ‘धर्मादेश सन्त महासम्मेलन’ भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है. संभवतः गत एक हजार साल के कालखण्ड में यह पहला अवसर होगा, जब इस देश की आध्यात्मिक ऊर्जा के स्रोत साधु-सन्तों ने स्वयं प्रेरणा से भारत और भारत की सर्वसमावेशी संस्कृति व समाज की भलाई के लिए विचार करने हेतु इतनी बड़ी संख्या में एकत्रित आए हैं. यह देश सदा से सन्तों के मार्गदर्शन में ही अपनी भलाई देखता आया है. जिसके फलस्वरुप वह सन्तों के पीछे दृढ़ता के साथ खड़ा है.
पूज्य वामदेव जी महाराज का कहना था कि हम सन्तों ने देवालयों और शिवालयों की पूजा का व्रत लिया है, जो हमारे जीवन का मुख्य ध्येय भी है. परन्तु आज देश में जिस प्रकार की परिस्थिति पैदा हो गई है, उसमें राष्ट्रदेव की आराधना परमावश्यक है. जैसे किसी महापुरुष ने कहा भी है – ‘‘हम करें राष्ट्र आराधन, तन से, मन से, धन और जीवन से’’. महर्षि अरविन्द ने भी कहा है कि ‘‘सनातन धर्म ही हमारे लिए राष्ट्रवाद है. यह हिन्दू राष्ट्र सनातन धर्म के साथ जन्मा था, इसके साथ ही गतिशील व बुद्धिशील है. इसलिए राष्ट्रभक्ति का आधार मातृभूमि के कण-कण से प्रेम है. राष्ट्रीयता हमारा धर्म है, आध्यात्मिक जीवन का एक व्यावहारिक रूप है. विविधता में एकता देखने वाली भारतीय आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त व्यक्ति ही राष्ट्रीय हो सकता है. यही आज का युगधर्म है.
इस्लाम के आक्रमण के समय औरंगजेब जैसे क्रूर आतताइयों के अत्याचारों को इस देश ने भोगा. तुलसीदास व सूरदास जैसे सन्तों के भजनों/पदों को गाकर मन को शान्त रखा. समाज के टूटते मनोबल व बिखरते सामाजिक ताने-बाने को संभालने का काम भी हमारे सन्तों ने बखूबी किया है. उनके अत्याचारों के सामने हमारा समाज कभी झुका नहीं, सब कुछ दांव पर लगाकर दृढ़ता से उनका सामना किया.
लोकतंत्र में वोटों का महत्व है. इस व्यवस्था में लोगों के सिर गिने जाते हैं. वोटों के गुणा-भाग के कारण लोकतांत्रिक व्यवस्था में अन्याय, अत्याचार के तौर-तरीके भी बदल गए हैं. जैसे- येन-केन प्रकारेण अपनी आबादी बढ़ाओ और सत्ता पर कब्जा जमाओ. जो नियम-विधान हमारे अनुकूल है उन्हें मानो, जो प्रतिकूल है उन्हें शरियत का बहाना बनाकर नकार दो. आवश्यक लगे तो सड़कों पर उतरकर हिंसक प्रदर्शन करो, सुरक्षा बलों पर हमला करो और सरकारों पर दबाव बनाकर अपनी नजायज मांगें मनवाओ.
जहां ईसाई बिशप चर्चों को चिट्ठी लिखकर केन्द्र सरकार को बदलने के लिए आह्वान करते हैं, वहीं इस्लाम के अनुयायी इस संदर्भ में मस्जिदों से फतवे जारी करते हैं. हिन्दू राज्यपाल की नियुक्ति के विरुद्ध नगालैण्ड में बन्द रखा जाता है. इन सभी के तार कहीं न कहीं उन बाहरी ताकतों से जुड़े हुए हैं, जो भारत को किसी न किसी प्रकार से कमजोर करने में लगे हुए हैं. हमें इन शक्तियों के षड्यंत्रों, कुचक्रों, छद्म क्रियाकलापों को समझते हुए सावधान रहना है. इन षड्यंत्रों को निष्फल करने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था अवलम्बन ही हमारे लिए ब्रह्मास्त्र है. हमारा यह कर्तव्य है कि इस्लाम के फतवों, चर्चों की चिट्ठियों के पीछे छुपे षड्यंत्रों से जन-जन को अवगत/जागृत करने के लिए गाँव-गाँव जाना होगा. परमहंस रामचन्द्रदास जी कहा करते थे कि – ‘जगत् रहेगा तो जगद्गुरु जी रहेगा’. पाकिस्तान इसका जीता-जागता उदाहरण है. पाकिस्तान में न साधु-सन्त बचे, न मठ-मन्दिर बचे और न ही हिन्दू बचे. इसलिए देश की रक्षा, हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है. जो हमारे देश, समाज का हित करता हो, हमें ऐसा राजा चाहिए. समाज विरोधी राजा को हटाने का वर्णन महाभारत में भी आया है. इस महासमागम में प्रमुख निम्न बिन्दुओं पर चर्चा कर धर्मादेश जारी करना है –
श्रीराम जन्मभूमि
जहां पर श्रीराम जन्मभूमि हमारी आस्था, विश्वास और श्रद्धा का विषय है, वहीं पर भारत की अस्मिता, राष्ट्रीय गौरव का भी विषय है. 1528 से लेकर आज तक हिन्दू समाज अपने आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मभूमि को मुक्त कराने, वहां पर भव्य मन्दिर निर्माण करने के लिए अनवरत संघर्ष करता आ रहा है. इन संघर्षों में साढ़े तीन लाख से अधिक रामभक्तों ने अपने प्राणों की आहूति दी है. श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में वही है, जहाँ आज रामलला विराजमान है. यह सत्य भी है, सनातन भी है और प्रत्यक्ष दिखाई भी दे रहा है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी जिसे प्रमाणित किया है. उच्चतम न्यायालय ने सात वर्षों तक इस मुकदमें को ठण्डे बस्ते में डाले रखा. 2017 में जब सुनवाई पर आया तो सेक्युलर जमात (कांग्रेसी, कम्युनिस्ट, मुसलमान) संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर विरोध पर उतर आईं और 2019 तक इसकी सुनवाई न हो, ऐसा प्रलाप न्यायालय में करने लगीं. परिणामस्वरुप जिस मुकदमे का इससे कोई सम्बन्ध में नहीं था और जिसका निर्णय 1994 में हो चुका था, ऐसे इस्माईल फारुखी के मुकदमे को बीच में लाकर उच्चतम न्यायालय का समय बर्बाद किया गया. आज जन-जन की एक ही आकांक्षा है कि जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर का शीघ्रातिशीघ्र निर्माण हो. भारत सरकार सोमनाथ की तर्ज पर कानून बनाकर मन्दिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे.
धर्मान्तरण-जनसंख्या वृद्धि
धर्मान्तरण मात्र पूजा पद्धति का परिवर्तन नहीं है, यह तो साक्षात् राष्ट्रान्तरण है. धर्मान्तरित व्यक्ति की राष्ट्र के प्रति निष्ठा भी बदल जाती है. इसके माध्यम से जनसंख्या का संतुलन तो बिगड़ता ही है. साथ ही हिन्दू विरोधियों की संख्या में भी वृद्धि होती है. जहां हिन्दू संख्या में कम हो जाता है, वहीं से अलगाव की आवाज भी आने लगती है. ‘हिन्दू घटा – देश बंटा’ यह अनुभव सिद्ध है. लव जेहाद, बांग्लादेशी व रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ एक नई समस्या को जन्म दे रही है. सरकार को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का निर्माण करना चाहिए. घुसपैठियों को रोकना, उनकी पहचान कर वापस भेजना, यह सभी सरकारों का संवैधानिक व नैतिक दायित्व है.
छद्मवेश
हिन्दू सन्तों के छद्मवेश में पादरियों और मौलानाओं द्वारा हिन्दू महिलाओं के शोषण के विरुद्ध हमको बड़ा अभियान लेकर जनमत खड़ा करना होगा और इस पर कोई कानून लाकर कठोर दण्ड की व्यवस्था करने के लिए केन्द्र सरकार को प्रेरित करना होगा.
नेशनल रजिस्टर्ड ऑफ सिटीजन
- हमारे देश में पहली जनगणना वर्ष 1951 में हुई थी और उसी के आधार पर असम की नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन तैयार किया गया. इसलिए सुप्रीमकोर्ट ने पहला आधार 1951 की जनगणना को ही माना.
- 1955 के सिटीजनशिप एक्ट में इस बात का प्रावधान है कि केन्द्र सरकार भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर बनाएगी.
- सिटीजनशिप एक्ट 1955 के सेक्शन 14ए में 2004 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत हर नागरिक के लिए अपने-आप को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन में रजिस्टर कराना अनिवार्य बनाया गया था.
- असम व मेघालय को छोड़कर पूरे देश के लिए पॉपुलेशन रजिस्टर को 2015-2016 में अपडेट किया गया था.
- सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद असम में अवैध तरीके से रहने वाले लोगों की पहचान कर उनको वापस भेजने के उद्देश्य से नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बनाने का काम चल रहा है.
- इस रजिस्टर का पहला ड्राफ्ट 31 दिसम्बर, 2018 को प्रकाशित होगा. इसमें उन लोगों के नाम होंगे, जो भारत के नागरिक माने जाएंगे.
- नागरिकता निर्धारण का आधार बिन्दु 25 मार्च, 1971 यानी वे लोग जो खुद, उनके माता-पिता या पूर्वज इस तारीख के पहले से असम में रह रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिक माना जाएगा. इसके लिए उन्हें दस्तावेजों के जरिए साबित करना होगा कि वे वैध तरीके से यहाँ रह रहे हैं.
- बंगलादेश बनने के बाद 1972 में सरकार ने घोषणा की थी कि भारत में 25 मार्च, 1971 तक आए बंगलादेशियों को ही रहने की इजाजत दी जाएगी.
- 2011 की जनगणना के अनुसार असम में एक करोड़ से ज्यादा मुस्लिम घुसपैठिये हैं, जो असम की संख्या का एक तिहाई हिस्सा है. 11 जिलों में इनकी बड़ी आबादी है. यही लोग एनआरसी का विरोध कर रहे हैं.
- हमारी माँग है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने का कार्य देश के सभी राज्यों में किया जाए. अवैध रूप से रह रहे लोगों को देश से बाहर किया जाए.
- भारत सरकार को चाहिए कि वह घुसपैठ विरोधी एक कठोर कानून बनाए, जिसमें घुसपैठ करने वाले, घुसपैठियों को आश्रय व रोजगार देने वाले, उनको जाली प्रमाणपत्र जारी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कठोरतम दण्ड का विधान हो.
इन सभी गम्भीर विषयों पर विचार करने और अपना कर्तव्य का निर्धारण करने के लिए ही आज का यह सम्मेलन बुलाया गया है.
नहीं है अब समय कोई, गहन निद्रा में सोने का,
समय है एक होने का, न मतभेदों में खोने का.
बढ़े बल राष्ट्र का जिससे, वो करना मेल है अपना,
स्वयं अब जागकर हमको, जगाना देश है अपना..
भारत माता की जय
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